कबीरदास का साहित्यिक परिचय
हिंदी के संत कवियों में कबीर दास का सर्वोच्च है कबीर हिंदी की संत काव्यधारा की ज्ञानाश्रयी निर्गुण शाखा के प्रमुख कवि हैं। इनका जन्म संवत् 1415 (सन् 1398) को माना जाता है। इनकी मृत्यु के विषय में भी विवाद है किंतु अधिकतर विद्वानों ने इसे सन् 1495 माना है। कबीर ने प्रसिद्ध वैष्णव संत स्वामी रामानंद से दीक्षा ली। कुछ लोग इन्हें सूफी संत शेख तकी का शिष्य भी मानते हैं। कबीर की वाणी का संग्रह- ' बीजक ' नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग हैं - साखी, संबंध और रमैनी। संकलित साथियों में कबीर ने हमें विभिन्न प्रकार की साखी दी है। इनकी भाषा को 'साधुक्कड़ी' या 'पंचमेल खिचड़ी' भाषा कहा जाता हैं।
साखी (दोहों)
1. गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पायँ।
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियौ बताए।।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ कबीरदास की साखी से ली गई है, इन पंक्तियों में कबीर दास ने गुरु के स्थान को ईश्वर से भी बड़ा माना है, यदि मेरे सामने गुरु और ईश्वर दोनों खड़े हो जाए तो पहले किसके पैर पढूँगा। मैं अपने गुरु पर ही कुर्बान हो जाऊंँगा और उनके चरण छूँ लूंगा क्योंकि, गुरु ने ही ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बतलाया है। अर्थात, गुरु ही हमें सही और गलत का ज्ञान देते हैं सही आचरण और नैतिक शिक्षा की बातें बतलाते हैं।
2. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है तो मैं नाहि।
प्रेम गली अति सांँकरी, तामे दो न समाहि।।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियों में कबीरदास ने ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में अहंकार को सबसे बड़ी बाधा माना है। जब उनके अंदर अहंकार था तो ईश्वर का वास नहीं था, लेकिन जब अहंकार अब उनके अंदर नहीं रहा तब ईश्वर का निवास था। प्रेम की गली इतनी संकरी है, जिसमें एक साथ दोनों नहीं समा सकते हैं। अर्थात, अहंकारी व्यक्ति कभी भगवान को नहीं पा सकता।
3. काँकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय।
ता चढि मुल्ला बांँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियों में कबीरदास ने धर्म के नाम पर दिखावा करने के लिए मुसलमानों को डांँटा हैं। उनके अनुसार कंकर पत्थर जोड़ कर मस्जिद बनाकर और उस पर चढ़कर बांँग देना (आवाज़ देना) व्यर्थ हैं। क्या उनका खुदा बहरा है, जो उसे सुनाई नहीं देता। अर्थात, धर्म के नाम पर दिखावा करना व्यर्थ हैं। ईश्वर अंतर्यामी है, और सर्वव्यापी है। इसलिए जो़र-जो़र से चिल्ला कर प्रार्थना करना व्यर्थ हैं।
4. पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार।।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियों में कबीरदास ने हिंदुओं को मूर्ति पूजने के लिए फटकारा हैं (डाँटा है)। वह कहते है, पत्थर की पूजा करने से अगर भगवान मिलते हैं, तो क्यों ना मैं पत्थर से बड़े पहाड़ की पूजा करु। जिससे उसे परमात्मा की प्राप्ति हो। अर्थात, पत्थर की पूजा करना व्यर्थ है। पत्थर की मूर्ति से भली पत्थर की बनी चक्की है, जो अनाज को पीसकर लोगों की भूख मिटाता है। और पूरे संसार को अनाज खाने को देता हैं।
5. सात समंद की मसि करौं, लेकिन सब बनराय।
सब धरती कागद कारौं, हरि गुन लिखा न जाए।।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियों में कबीरदास ने कहा है, 'ईश्वर के गुण अनंत हैं, उनके गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता है'- यदि मैं सातों समुद्र के जल को स्याही बना लूंँ, धरती के सभी वनों को लेखनी या अक्षर बना लूंँ, पूरी धरती को कागज़ के रूप में प्रयोग करूं, तो भी ईश्वर के गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता। अर्थात, ईश्वर सर्वव्यापी हैं, वह कब, कहांँ, किस रूप में हमारी सहायता करते है इसका वर्णन नहीं किया जा सकता हैं।
साखियों पर आधारित प्रश्न:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:-
(i) गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पायँ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोबिंद दियौ बताय।।
क) संत कबीर ने गुरु और ईश्वर की तुलना किस प्रकार की है तथा इस दोहे के माध्यम से क्या सीख दी है?
> संत कबीर ने गुरु और ईश्वर की तुलना कुछ इस प्रकार की है वह कहते हैं कि, यदि मेरे सामने गुरु और ईश्वर दोनों खड़े हो जाए तो मैं किसकी पाव पहले लूंँगा। वह यह भी कहते हैं यदि मेरे सामने गुरु और ईश्वर दोनों साथ में खड़े हो जाए तो मैं सब से पूर्व अपने गुरु का पाव लगूंँगा क्योंकि गुरु ही है, जिन्होंने मुझे ईश्वर के बारे में बतलाया है जिनके माध्यम से मैंने ईश्वर के बारे में जाना उन्हें समझा और गुरु ही है जो हमें सही और गलत का मार्ग दिखाते हैं। इस दोहे के माध्यम से हमें यही सीख मिलती है कि हमें अपने गुरु की हमेशा सम्मान एवं आदर करना चाहिए क्योंकि उनके माध्यम से ही हमें सब कुछ जानने और समझने को मिलता है।
(ख) ' गुरु ' और ' भगवान ' को अपने सामने पाकर कबीर के सामने कौन सी समस्या उत्पन्न हुई? कबीर ने उसका हल किस प्रकार निकाला और क्यों?
> 'गुरु' और 'भगवान' को अपने सामने पाकर कबीर के सामने यह समस्या उत्पन्न हुई कि वह सबसे पहले किसके पांँव छूँए। कबीर ने इस समस्या का हल इस प्रकार निकाला की उन्होंने कहा- " मैं सबसे पहले गुरु और भगवान में गुरु के पैर छूँगा क्योंकि गुरु ही है जिन्होंने मुझे भगवान के बारे में जानकारी दी एवंम् उन के माध्यम से ही मुझे ईश्वर प्राप्ति का ज्ञान मिला यदि गुरु ना होते तो आज मुझे भगवान के बारे में कौन समझाता इसलिए मैं सबसे पहले अपने गुरु के पांँव छूँए।
(ग) 'बलिहारी गुरु आपनो' कबीर ने ऐसा क्यों कहा है?
> कबीर ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि गुरु ही है जिन्होंने कबीर दास को ईश्वर के बारे में बतलाया था और समझाया था इसलिए वह कहते हैं कि वह सबसे पहले अपने गुरु के पैर छूँएगे यह दिन मेरे सामने ईश्वर और गुरु दोनों खड़े हो जाए।
(घ) 'गुरु गोविंद दोऊ खड़े'- शीर्षक साखी के आधार पर गुरु का महत्त्व प्रतिपादित कीजिए।
> 'गुरु गोविंद दोऊ खड़े' का अर्थ है — गुरु और ईश्वर दोनों यदि हमारे सामने खड़े हो जाए तो हम दोनों में से किसके पाँव पहले छूँएगे। इस दोहे से कबीरदास हमें यह बताना चाहते हैं कि हमारे सामने यदि गुरु और गोविंद दोनों खड़े हो जाए तो हमें सबसे पूर्व गुरु के पाँव छूँने चाहिए क्योंकि गुरु ही हैं जिन्होंने हमें हर चीज का ज्ञान दिया, जिन्होंने हमें ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बतलाया इसलिए हमें अपने गुरुओं का आदर एवम् सम्मान करना चाहिए क्योंकि वह हमें अपने जीवन में कैसे और किस मार्ग में जाना है इसका ज्ञान देते हैं जिससे हमारा जीवन में आगे बढ़ने में सहायता मिलती हैं इसलिए हमें अपने गुरुओं का सम्मान सबसे पूर्व करना चाहिए।
(ii) जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है तो मैं नाहि।
प्रेम गली अति सांँकरी, तामे दो न समाहि।।
(क) 'जब 'मैं' था तब हरि नहीं'— दोहे में 'मैं' शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया गया है? 'जब मैं था तब हरि नहीं' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
> दोहे में 'मैं' शब्द का प्रयोग 'अहंकार' को दर्शाने के लिए किया गया है। जब मनुष्य के अंदर अहंकार होता है तब उनके अंदर ईश्वर का वास नहीं रहता क्योंकि अहंकार अपने आप को बहुत बलवान समझ बैठता हैं। इसलिए जिस मनुष्य के अंदर अहंकार की भावना जागृत रहती है उसे मनुष्य के अंदर कभी भी ईश्वर का वास नहीं रहता क्योंकि ईश्वर वही वास करते हैं जहांँ प्रेम एवं निस्वार्थ भाव रहता है।
(ख) कबीर के अनुसार प्रेम की गली की क्या विशेषता है? प्रेम की गली में कौन – सी दो बातें एक साथ नहीं रह सकतीं और क्यों?
> कबीर के अनुसार प्रेम की गली की यह विशेषता है,– वह बहुत ही पतली और छोटी है जहांँ दो बातें एक साथ नहीं रह सकते। प्रेम की गली में अहंकार और ईश्वर यह दो बातें एक साथ नहीं रह सकती हैं, क्योंकि जहांँ अहंकार होता है वहांँ ईश्वर कभी नहीं होते और जहांँ ईश्वर होते हैं वहांँ अहंकार कभी नहीं होता। इसका यह अर्थ है, की ईश्वर उन्हीं के पास होते हैं जिनके मन में अहंकार की भावना नहीं होती और जहांँ अहंकार की भावना होती है जिस मनुष्य के अंदर होती है उस मनुष्य के हृदय में ईश्वर कभी निवास नहीं करते।
(ग) उपर्युक्त साखी द्वारा कबीर क्या संदेश देना चाहते हैं?
> उपर्युक्त साखी द्वारा कबीर यह संदेश देना चाहते हैं की ईश्वर का वास वहांँ होता है जहांँ अहंकार नहीं होता। अहंकार और भगवान दोनों एक साथ नहीं रह सकते। कबीर कहते हैं कि प्रेम की गली बहुत तंग है उसमें अहंकार और भगवान दोनों नहीं रह सकते। इसका यह भाव है, कि अहंकारी व्यक्ति कभी भी भगवान को नहीं पा सकता।
(घ) 'प्रेम गली अति सांँकरी'— पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
> 'प्रेम गली अति सांँकरी' पंक्ति का यह अर्थ है की प्रेम की गली बहुत थी तंग है पतली और छोटी है जहांँ दो चीजें कभी नहीं रह सकती अहंकार और ईश्वर जहांँ अहंकार है वहांँ ईश्वर नहीं और अदाएं ईश्वर है वहांँ अहंकार नहीं।
(iii) काँकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय।
ता चढि मुल्ला बांँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।
(क) कबीरदास ने मस्जिद की क्या-क्या विशेषताएंँ बताई हैं?
> कबीरदास मस्जिद की या विशेषता बताते हैं कि यह मस्जिद कंकर और पत्थरों को जोड़ कर औके बनाई जाती हैं जहांँ चढ़कर मूला बांँग देता है।
(ख) उपर्युक्त पंक्तियों में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
> उपर्युक्त पंक्ति में यह कहा गया है कि कंकड़ पत्थर को जोड़कर मस्जिद बनाकर और उस पर चढ़कर मूला बांग देता है क्या उसका खुदा बहरा है जो वह नहीं सुनता उसकी दुआ को।
(ग) उपर्युक्त दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कबीर बाह्य आडंबरों के विरोधी थे।
> कबीर बाह्य आडंबरों के विरोधी थे और इसलिए वह मुसलमानों को फटकार ते हुए कहते हैं की कंकर पत्थर को जोड़कर मस्जिद बनाते हो और उस पर चढ़कर चिल्ला— चिल्ला कर बोलते हो क्या तुम्हारा खुदा बहरा है जो नहीं सुनता।
(घ) उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कबीर क्या संदेश देना चाहते हैं?
> उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कबीर यह संदेश देना चाहते हैं कि भगवान हमारे आस-पास ही रहते हैं उन्हें इतना चिल्ला —चिल्ला कर बोलने की कोई आवश्यकता नहीं होती है, वह बहरे नहीं है जो हमारे हृदय की बात नहीं सुनते हैं वह सब कुछ जानते। वह सर्वव्यापी, सर्वअज्ञानी होते हैं। इस प्रकार कंकड़ पत्थर से मस्जिद बनाकर उस पर चढ़कर बांग देना है और लोगों को परेशान करना है ना कि ईश्वर को पुकारना।
(iv) पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार।।
(क) कबीर हिंदुओं की मूर्ति पूजा पर किस प्रकार व्यंग्य कर रहे हैं?
> कबीर हिंदुओं की मूर्ति पूजा पर कहते हैं यदि पत्थर पूजने से मुझे भगवान की प्राप्ति होती है तो क्यों ना मैं पहाड़ की पूजा करूं।
(ख) 'ताते ये चाकी भली'— पंक्ति द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?
>'ताते ये चाकी भली' पंक्ति द्वारा कबीर यह कहना चाहते हैं कि जो यह लोग पत्थरों को भगवान समझ कर पूजते हैं उससे अच्छा तो यह चाकी है जो आटा पीस कर पूरे संसार का पेट भर्ती है।
(ग) 'कबीर एक समाज सुधारक थे'— उपयुक्त पंक्तियों के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए तथा बताइए कि इन पंक्तियों द्वारा वे क्या संदेश दे रहे हैं?
> कबीरदास एक समाज सुधारक थे। उपयुक्त पंक्तियों के द्वारा वे पूरे समाज को यह संदेश देना चाहते थे कि हमें भगवान को मन से याद करना चाहिए ना कि पत्थरों को मूर्ति बनाकर पूजना चाहिए अगर पत्थरों को पूजने से भगवान प्राप्त होते हैं तो क्यों ना मैं पहाड़ को पूजू। वह यह हिंदू धर्म को फटकारते हुए कहते हैं वह यह भी कहते हैं पत्थरों को पूजने से अच्छा है कि चक्की को पूजे जिस पर गेहूं पीसकर पूरा संसार अपना पेट भरता है।
(घ) कबीर की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
> कबीर की भाषा में अनेक भाषाओं के शब्द का मेल है। इसलिए इनकी भाषा को 'साधुक्कड़ी' या 'पंचमेल खिचड़ी' भाषा कहा जाता है।
(v) सात समंद की मसि करौं, लेकिन सब बनराय।
सब धरती कागद कारौं, हरि गुन लिखा न जाए।।
(क) 'भगवान के गुण अनंत हैं'— कबीर ने यह बात किस प्रकार स्पष्ट की है?
> 'भगवान के गुण अनंत हैं' —कबीर यह बात कुछ इस प्रकार दर्शाते हैं वह कहते हैं कि यदि मैं सातों समुद्र के जल को स्याही बना लूंँ, धरती के सभी वनों को लेखनी या अक्षर बना लूंँ, पूरी धरती को कागज़ के रूप में प्रयोग करूं, तो भी ईश्वर के गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता। अर्थात, ईश्वर सर्वव्यापी हैं, वह कब, कहांँ, किस रूप में हमारी सहायता करते है इसका वर्णन नहीं किया जा सकता हैं।
(ख) कबीर की भक्ति भगवान पर प्रकाश डालिए।
>कबीर की भक्ति सहज है। वे ऐसे मंदिर के पुजारी है जिसकी फर्ष हरी—हरी घास जिस की दीवारें दसों दिशाएंँ हैं।जिसकी छत नीले आसमान की छतरी है या साधना स्थान सभी मनुष्य के लिए खुला है। कबीर की भक्ति में एकग्र मन, सतत साधना, मानसिक पूजा अर्चना, मानसिक जाप और सत्संगति को विशेष महत्व दिया गया है।
(ग) कबीर ने भगवान के गुणों का बखान करने के लिए किन किन वस्तुओं की कल्पना की है वह इस कार्य के लिए पर्याप्त क्यों नहीं हैं?
> कबीर ने भगवान के गुणों का बखान करने के लिए सात समुंदर वन एवं पूरे धरती की कल्पना की है और फिर भी वह कहते हैं कि वह कम पड़ जाएंगे ईश्वर के गुणों के बारे में लिखने के लिए क्योंकि ईश्वर सर्वव्यापी है जो हर दुख-सुख में मनुष्यों की मदद करते हैं।
(घ) 'लेखनि सब बनराय' का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
>'लेखनि सब बनराय' का अर्थ है, कलम से पूरी जंगल भी लिख दूं तो कम है ईश्वर के वर्णन करने के लिए।
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