मेघआए
कवि परिचय - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
नई कविता के विख्यात सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के द्वारा किया गया था इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में 15 सितंबर 1927 ईस्वी में हुआ। सन् 1965 में इन्होंने 'दिनमान' सप्ताहिक पत्रिका के उपसंपादक के पद पर कार्य किया।इसके बाद इन्हें बच्चों की प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय मासिक पत्रिका 'पराग' के संपादन की जिम्मेदारी मिली, जिसका अत्यंत सफलतापूर्वक वहन किया। सन् 1983 में इनका आकस्मिक निधन हो गया, जो साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति थी। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं - 'काठ की घंटियाँ', 'बाँस का पुल', 'गर्म हवाएँ', 'एक सूनी नाव', 'कुआवो नदी', 'जंगल का दर्द', 'खूँटियों पर टँगे लोग' काव्य संग्रह, 'पागल कुत्तों का मसीहा', 'सोया हुआ जल' उपन्यास ; 'बकरी' - नाटक तथा लड़ाई-कहानी। इन्होंने प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य भी लिखा। 'दिनमान' में प्रकाशित 'चरखे और चरचे' स्तंभ के लिए इन्हें बहुत लोकप्रियता प्राप्त हुई।
पंक्तियों का भावार्थ:-
1) मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे़-खिड़कियांँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन जयों आए हो, गांँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे़-खिड़कियांँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन जयों आए हो, गांँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
विशेष- गांँवों में शहर से जब कोई मेहमान सज-धजकर आता है तो पूरे गांँव में उल्लास का वातावरण छा जाता है। दामाद की सूचना देने वाला अत्यंत उत्साह से उसके आगमन की सूचना देता है, उसी प्रकार पूरब से चलने वाली ठंडी हवा भी बादलों के आगमन की सूचना देती है। वह अत्यंत प्रसन्न होकर नाचती-गाती चलती है। उसे नाचते-गाते देखने के लिए लोग अपने घरों के दरवाजे़ और खिड़कियांँ खोल देते हैं।
2) पडे़ झुक झांँकने लगे गरदन उचकाए,
आंँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा नदी ठिंठकी, घूँघट सरखए।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा रचित है, उपयुक्त पंक्तियों में कवि आकाश में बादलों के घिर आने के माध्यम से किसी शहर से गांँव में आए मेहमान का चित्रण किया है। जब मेघ आ गए तो पेड़ों ने गरदन उचकाकर, झुकाकर उन्हें देखा। भाव यह है कि हवा चलने से पेड़ों के झुकने से ऐसा प्रतीत होता है मानो पेड़ मेघों के आगमन पर उन्हें गरदन झुकाकर अत्यंत उल्लास एवं उत्सुकता से देख रहे हों। धीरे-धीरे हवा आंँधी में बदल गई और चारों ओर धूल उड़ने लगी। आंँधी के चलने को देखकर ऐसा लग रहा है मानो गांँव की युवती मेहमान को आते देखकर अपना लहंँगा समेटकर भागी चली जा रही है। बादलों के घिर आने पर नदी भी ठिठक गई और उन्हें देखने लगी।
विशेष- गांँव में शहर से किसी मेहमान (दमाद) के बन-ठन कर सज-सँवरकर आने पर जिस प्रकार गांँव के लोग उसे झुक-झुकाकर प्रणाम करते हैं, वैसे ही पेड़ भी मेघों को गरदन उचकाकर और झुक-झुकाकर देख रहे हैं। आंँधी को देखकर कवि कल्पना करता है कि उसका तेज़ चलना वैसे ही है जैसे गांँव की किसी युवती का गांँव में आए मेहमान को देखकर अपना लहंँगा समेटकर भागी चली जाना। नदी की ठिठकने से कवि का आशय है कि गांँव की वधुओं ने घूँँघट कर लिया और वे मेहमान को देखने लगी।
3) बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
' बरस बाद सुधि लीन्हीं'
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा रचित है। इन पंक्तियों में कवि कहते हैं बूढ़े पीपल ने मेघों का स्वागत किया। लता को ऐसी युवती के रूप में दिखाया गया है जिसका पति उस से एक वर्ष बाद मिलने आया हो इस प्रकार तालाब भी मेघों के आगमन पर उल्लासित है, क्योंकि मेघों के आने से उसमें पानी भरेगा।
अर्थात, बादलों के आने से बूढ़ा पीपल का पेड़ आगे बढ़ कर किसी बुजुर्ग की तरह उनका स्वागत करता है, और बादलों से शिकायत करता है कि तुमने वर्ष भर बाद हमारी सुधि ली है। किवाड़ की ओठ से लता शिकायत करते हुए कहती है वर्ष भर बाद आए हैं। तालाब मेघ को देखकर बहुत खुश होता है कि वह अपने साथ परात भर पानी लाया है।
4) क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,
' क्षमा करो गांँठ खुल गई अब भरम की।'
बांँध टूटा झर-झर मिलने के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा रचित है। इस कविता के पंक्तियों में कवि यह बतलाते हैं कि किस तरह मेघों के आगमन का शब्द चित्र अंकित किया गया है। आकाश में बादल छा गए। क्षितिज पर गहरे बादलों में बिजली चमकी और वर्ष शुरू हो गई। कवि ने इस संबंध में कल्पना की है कि मेहमान और उसकी पत्नी का मिलन हो गया। पत्नी ने पहले तो उसे एक वर्ष बाद आने और एक वर्ष बाद उसकी सुध लेने का उलाहना दिया था, पर जब दोनों का मिलन हो गया तो बिजली-सी कौंध गई और पत्नी के मन में जो भ्रम था, वह दूर हो गया, उसे भ्रम की गांँठ खुल गई अर्थात् उसके मन की सारी शंकाएंँ दूर हो गईं। जब पति-पत्नी का मिलन हुआ तो मिलने के अश्रु निकले तथा एक वर्ष के वियोग का बाँध भी मानो टूट गया। उसने मेहमान से क्षमा याचना की।
अर्थात्, किवाड़ की ओठ से लता शिकायत करते हुए कहती है वर्ष भर बाद आए हैं। ऊंँचे मकान के ऊपर बादल लहराते हैं, और बिजली चमकती है बिजली रूपी कहती है मुझे माँफ करो मेरा भ्रम टूँट गया मुझे यह भ्रम हो गया था कि तुम मुझे छोड़ कर चले गए थे। मिलन के बाद दोनों की आंँखों से आंँसू निकले और जोर से वर्षा होने लगी।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें:-
1) मेघों के आगमन से प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होता है?> मेघों के आगमन से प्रकृति में अलग-अलग तरीकों की परिवर्तन दिखाई देती है जैसे:- हवा नाँचती-गाँती चलती है, पीपल कब बूँढ़ा पेड़ उसकी स्वागत करने के लिए आते हैं, पेड़ उन्हें झुक-झुक कर देखते हैं, बिजली चमकती है, तालाब खुश हो जाते हैं, आदि, जैसी परिवर्तन दिखाई देती है।
2) मेघ के बन-ठन कर आने का क्या तात्पर्य है?
> मेघ के बन-ठन कर आने का यह तात्पर्य है, कि एक वर्ष बाद वह सब से मिलने आए हैं। एक शहरी मेहमान बनकर जिसकी स्वागत में पूरा गांँव सम्मिलित है।
3) जब मेघ आते हैं तब हवा, पेड़, नदी, ताल पर क्या प्रभाव पड़ता हैं?
> जब मेघ आते हैं तब हवा नाँचते-गाँते आती है, पेड़ उठ-उठकर उन्हें देखने लगते हैं, नदी एक स्त्री के भांँति अपना लहंँगा समिति है, ताल बहुत खुश हो जाते हैं कि इस बार वह परात भर पानी भर कर लाए होंगे। कुछ इस तरह का प्रभाव उन्हें देखने को मिलता है।
4) पीपल के पेड़ को बुरा क्यों कहा गया है। वह बादलों का स्वागत किस प्रकार करता है?
> जब गांँव में कोई मेहमान आता है तो घर का बड़ा-बुजु़र्ग उसका स्वागत करता है। अभिवादन करता है। उसी प्रकार पीपल के पेड़ को मेघों का स्वागत करने के लिए कहा जाता है। और वह बादलों का स्वागत आगे बढ़कर करते हैं और उनसे शिकायत करते हैं कि वह इस बार एक वर्ष बाद आए हैं।
5) लता शिकायत करते हुए बादलों से क्या कहते हैं?
> किवाड़ की ओट मे खड़ी होकर यह लता शिकायत करते हुए कहती है, वर्ष भर बाद आए हो मुझे मिलने।
6) बिजली रूपी पत्नी को क्या भ्रम हो गया था?
> बिजली रूपी पत्नी को यह भ्रम हो गया था कि उसका पति उसे छोड़ कर चला गया है, और वह माफी मांँगती है क्योंकि उसका भ्रम टूट गया था। जब उसने अपने पति को वापस देखा था।
7) कवि ने मूसलाधार वर्षा का दृश्य कैसे उत्पन्न किया है?
> कवि ने मुसलखधार वर्षा का दृश्य कुछ इस तरह उत्पन्न किया, जब बिजली चमकती है और वह अपने पति से मिलती है तब दोनों के मिलने से उनकी आंँखों से अश्रु बहने लगते हैं जिससे मूसलाधार बारिश होने लगती है।
8) मेघ आए कविता के बादल, बिजली, पीपल का पेड़ आदि को किस रूप में दर्शाया गया है?
> मेघ आए कविता में बादल को एक शहरी मेहमान (दामाद) के रूप में दर्शाया गया है, बिजली को उसकी पत्नी, पीपल के पेड़ को एक बूढ़े बुजुर्ग जो अपने दामाद के स्वागत के लिए आगे बढ़ते हैं, और नदी को गांँव की स्त्री जो शहर से आए मेहमान को देखकर अपना लहंँगा समिति है, ताल भी मेघ को देख कर बहुत खुश होता है क्योंकि वह यह सोचता है कि वह अपने साथ परात भर पानी लाया होगा।
9) इस कविता में कवि का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय दें।
> इस कविता के कवि का नाम 'सर्वेश्वर दयाल सक्सेना' है जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में 15 सितंबर 1927 ईस्वी को हुआ।सप्ताहिक पत्रिका के उपसंपादक के पद पर कार्य किया।इसके बाद इन्हें बच्चों की प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय मासिक पत्रिका 'पराग' के संपादन की जिम्मेदारी मिली, जिसका अत्यंत सफलतापूर्वक वहन किया। सन् 1983 में इनका आकस्मिक निधन हो गया, जो साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति थी। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं - 'काठ की घंटियाँ', 'बाँस का पुल', 'गर्म हवाएँ', 'एक सूनी नाव', 'कुआवो नदी', 'जंगल का दर्द', 'खूँटियों पर टँगे लोग' काव्य संग्रह, 'पागल कुत्तों का मसीहा', 'सोया हुआ जल' उपन्यास ; 'बकरी' - नाटक तथा लड़ाई-कहानी। इन्होंने प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य भी लिखा। 'दिनमान' में प्रकाशित 'चरखे और चरचे' स्तंभ के लिए इन्हें बहुत लोकप्रियता प्राप्त हुई।
10) बादलों के आने से आंँधी किस प्रकार चलने लगती है?
> बादलों के आने से आंँधी नाँचती-गाँती चलने लगती है।
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