कहानीकार का परिचय
- मन्नू भंडारी
मन्नू भंडारी हिंदी कहानी साहित्य में 'नई कहानी' आंदोलन की प्रारंभिक कहानीकार मानी जाती हैं। इनके साहित्य में सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक तथा संस्कृति समस्याओं का हृदयस्पर्शी वर्णन मिलता है। इनका जन्म 3 अप्रैल 1931 में के मध्य प्रदेश में मंदसौर जिले के भानपुरा गाँव में जन्मी मन्नू का बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था। लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम का चुनाव किया। उन्होंने एम ए तक शिक्षा पाई और वर्षों तक दिल्ली के मिरांडा हाउस में अध्यापिका रहीं। यह नारी जीवन तथा नारी मन की कुशल चित्रकार है। इनकी कहानियों में मान्यताओं, विश्वासों, प्रथाओं, परंपराओं, प्राणहीन रुढि़यों तथा अर्थहीन धारणाओं के प्रति सहज व सकारात्मक विद्रोह उभरता हैं।
कहानी का उद्देश्य
कहानी में दो सहेलियों का चित्रण हुआ है। चित्रा एक सफल चित्रकार है। पूर्ण एकाग्रता से उसने एक सफल चित्रकार बनने का लक्ष्य प्राप्त किया। नाम और धन अर्जित किया। और दूसरी तरफ अरुणा के जीवन का लक्ष्य था असहयोग की मदद करना और विशेष रूप से गरीब बच्चों को पढ़ाना। समाज सेवा करना ही जीवन में अरुणा का लक्ष्य था। चित्रा के अनुसार अच्छे चित्र बनाना ही सच्चे कलाकार की पहचान है, जबकि अरुणा के अनुसार इन निर्जीव चित्रों को बनाने में समय बेकार करने से कहीं बेहतर है कि जीवित प्राणियों का कुछ भला किया जाए जो निर्धन है, असहाय हैं, पीड़ित और शोषित है, उनके जीवन में सुधार लाने का प्रयास किया जाए। अर्थात, कहानी उद्देश्य बताना है, कि समाज की सेवा करना ही सच्ची कला है।
प्रश्न उत्तर:-
1) कहानी का शीर्षक सार्थक क्यों लगता है?
> यह कहानी दो अलग-अलग विचार धाराओं वाली अभिनन सहेलियों की कहानी है। चित्र अपनी आकांक्षाओं को अपना लक्ष्य मानती थी। उसकी आकांक्षा थी कि विदेश जाकर अपनी चित्रकला को निखारना घतथा देश-विदेश में यश अर्जित करना। अरुणा के अंदर भी एक कलाकार था। उसके जीवन का उद्देश्य था कि वह दिन दुखियो की सहायता करें तथा उनके जीवन में एक अनोखा रंग भरे। इस प्रकार दो कलाकार कहानी का शीर्षक पूर्ण रूप से सार्थक लगता है।
2) दो कलाकार कहानी में कौन दो सहेलियों का वर्णन किया जा रहा है?
> दो कलाकार कहानी में अरुणा और चित्र का वर्णन किया जा रहा है।
3) दोनों सहेलियों का चरित्र चित्रण करें?
> अरुणा - अरुणा एक साधारण परिवार से थी। वह चित्रा की सबसे करीबी दोस्त थी। उसके जीवन का लक्ष्य और उद्देश्य गरीब दीन-दुखियों की सहायता करना था। वह हमेशा लोगों के बारे में सोचती थी जो खुद की मदद नहीं कर पाते थे, वह उनकी मदद करने के लिए हमेशा तत्पर यह रहती थी। गरीब बच्चों का साक्षर करना। चित्रा ने जिस 'अनाथ' शीर्षक से नाम कमाया उन्हीं अनाथ बच्चों को अरुणा ने अपनाकर अपना बनाया। अरुणा का जीवन त्याग, सेवा और सहानुभूति से आधारित था।
चित्रा - चित्र एक अमीर पिता की बेटी थी। जिसके जीवन का लक्ष्य एक ही था एक सफल चित्रकार बनना और यश धन प्राप्त करना। किसी दिन दुखियों के प्रति उसके अंदर कोई संवेदना नहीं थी किसी बड़ी दुर्घटना या हादसे में भी वह अपनी पेंटिंग के लिए मॉडल ढूंढती थी। अपनी सहेली अरुणा के समाज सेवा कार्य को भी व उपहास उड़ा देती थी। चित्रा ने विदेश जाकर अपनी चित्रकला को निखारा और बहुत नाम कमाया। 'अनाथ' शीर्षक से चित्र बनाया उससे उसकी ख्याति और बढी़। इस चित्र के पीछे चित्र का स्वार्थ स्पष्ट दिखाई देता है। इस चित्र की प्रेरणा उसे गर्ग मेडिकल के पास पड़ी एक मृत भीखारण से मिली थी। जिस से लिपट कर दो बच्चे रो रहे थे। इस घटना से चित्रा का हृदय नहीं पिघला था बल्कि उसे अपनी पेंटिंग के लिए एक मॉडल मिल गया था।
4) किसने खींचकर सोती हुई अरुणा को झकझोर कर उठा दिया?
> चित्रा ने खींचकर सोती हुई अरुणा को झकझोर कर उठा दिया।
5) धनी पिता की इकलौती बेटी कौन थी? उसके बारे में बताएंँ।
> धनी पिता की इकलौती बेटी चित्रा थी। जिसके जीवन का लक्ष्य से एक मशहूर चित्रकार बनना था उसे लोगों के प्रति कोई भावना यह सहानुभूति नहीं थी वह बस कहीं पर भी अपने चित्र के लिए एक मॉडल ढूंढती फिरती थी।
6) "तो तू मुझे आदमी नहीं समझती क्यों?" किसने किसको आवेश में बोला? और किसने किसको क्या सुझाव दिया?
> अरुणा ने चित्र को आवेश में बोला। और चित्र को सुझाव देते हुए कहा तुझे दुनिया से कोई मतलब नहीं दूसरों से कोई कोई मतलब नहीं बस चौबिस घंटे अपने रंग और तूलिकाओं में डूबी रहती है। दुनिया में इतनी बड़ी घटना घट जाए पर यदि उसमें तेरे चित्र के लिए आईडिया नहीं तो तेरे लिए वह घटना कोई महत्व नहीं रखता हर घड़ी हर जगह हर चीज में तू अपने चित्रों के लिए मॉडल खोजती रहती है कागज पर इन निर्जीव चित्रों को बनाने के बजाय दो-चार की जिंदगी क्यों नहीं बना देती! तेरे पास सम सामर्थ है, और साधन है।
7) विदेश कौन गई थी? किस की प्रशंसा विदेश में बहुत हुई ?और किस वज़ह से हुई?
> विदेश चित्रा गई थी अपने कला को निखारने। उसकी वहांँ बहुत प्रशंसा हुई देश-विदेश में उसके चित्रकला ने बहुत नाम कमाया। उसकी इस प्रशंसा की वज़ह उसकी पेंटिंग थी, जिसका शीर्षक 'अनाथ' था।
संक्षिप्त प्रश्न:-
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए:-
i) अरे यह क्या इसमें तो सड़क, आदमी, ट्राम, बस, मोटर, मकान सब एक दूसरे पर चढ़ रहे हैं। मानो सबकी खिचड़ी पक्काकर रख दी हो। क्या घनचक्कर बनाया है?
क) 'अरे, यह क्या?'- वाक्य का वक्ता और श्रोता कौन है? उपयुक्त कथन का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
> यह वाक्य अरुणा चित्रा से कह रही है। चित्रा ने एक चित्र बनाया था जिसे लेकर वह बहुत उत्साहित थी। अरुणा को दिखाने के लिए चित्रा उसे नींद से खींचकर लाई। परंतु अरुणा को समझ नहीं आ रहा था कि चित्र का अर्थ क्या हैं?
ख) चित्र को चारों और घुमाते हुए वक्ता ने श्रोता को चित्रों के संबंध में क्या सुझाव दिया था?
> अरुणा ने चित्रा को चित्र देखकर या सुझाव दिया कि यह चित्र आज की दुनिया में 'कंफ्यूजन' का प्रतीक है। इससे अच्छा तो तू किसी की मदद कर देती।
ग) 'खिचड़ी पकाकर' और 'घनचक्कर' शब्दों का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि इनका प्रयोग किस संदर्भ में किया जा रहा है और क्यों?
> खिचड़ी पकाकर का अर्थ है,' घालमेल करना' और घनचक्कर का अर्थ है,' चक्कर में डाल देना'। इसका मतलब सब कुछ एक मैं ही मिला देना और दूसरों के दिमाग को कंफ्यूज कर देना। इस मुहावरे के माध्यम से यह कहा जा रहा है कि कहानी में बनी हुई चित्र की स्पष्टता दिखाई नहीं दे रही हैं। बस, सड़क, आदमी, ट्राम, आदि सब एक दूसरे के ऊपर चढ़ गए हैं जो लोगों के दिमाग में कंफ्यूज बढ़ाते जा रहे हैं।
घ) श्रोता ने अपने चित्र को किसका प्रतीक बनाया? वक्ता ने उसकी खिल्ली किस प्रकार उड़ाई?
> श्रोता ने अपने चित्र में 'दुनिया की कन्फ्यूजन' का प्रतीक बनाया। वक्त ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा की," तेरे दिमाग के कंफ्यूजन का प्रतीक नज़र आ रहा है।" बिना मतलब जिंदगी खराब कर रही है।
ii) पर सच कहती हो मुझे तो सारी कला इतनी निरर्थक लगती है, इतनी बेमतलब लगती है कि बता नहीं सकती।
क) वक्ता को किसकी कला निरर्थक लगती थी और क्यों?
> अरुणा चित्रा की कला को निरर्थक कहती है क्योंकि उसकी नज़र में सच्ची कला वो है जो लोगों की सहायता करें दिन दुखियों की मदद करें और लोगों में अपना प्रेम निछावर करें।
ख) वक्त आने उसकी कला पर व्यंग करते हुए क्या कहा और उसे क्या सलाह दी?
> वक्त आने श्रोता के कला पर व्यंग करते हुए कहा है," कि मुझे यह सारी कला निरर्थक लगती है, इतनी बेमतलब लगती है कि बता नहीं सकती। किस काम की ऐसी कला जो आदमी को आदमी ना रहने दें।" और उसे यह सलाह देती है कि तुझे दुनिया से कोई मतलब नहीं दूसरों से कोई मतलब नहीं बस चौबिस घंटे अपने रंग और तूलिकाओं में डूबी रहती है। दुनिया में इतनी बड़ी घटना घट जाए पर यदि उसमें तेरे चित्र के लिए आईडिया नहीं तो तेरे लिए वह घटना कोई महत्व नहीं रखता हर घड़ी हर जगह हर चीज में तू अपने चित्रों के लिए मॉडल खोजती रहती है कागज पर इन निर्जीव चित्रों को बनाने के बजाय दो-चार की जिंदगी क्यों नहीं बना देती! तेरे पास सम सामर्थ है, और साधन है।
ग) वक्ता की बात पर श्रोता ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की और क्यों?
> वक्त की बात पर श्रोता कहती है," वह काम तो तेरे लिए छोड़ दिया। मैं चली जाऊंँगी तो जल्दी ही सारी दुनिया का कल्याण करने के लिए झंडा लेकर निकल पड़ना!" और हंँस पड़ी।
घ) आपके अनुसार सच्ची कला की क्या पहचान है?
> सच्ची कला की पहचान उनके किए गए कार्य से प्रतीक होता है। मेरे अनुसार सच्ची कला लोगों की मदद करना उनके बेरंग जिंदगी में रंग भरना एवंम् दीन दुखियों को आशय देना है। परंतु लोगों में समाज सेवक की भाव को जागरूक करने के लिए चित्रकला भी होना जरूरी है ताकि लोग चित्र देखकर दूसरों की मदद करने के लिए प्रेरित हो।
iii) वह काम तो तेरे लिए छोड़ दिया। मैं चली जाऊंँगी तो जल्दी ही सारी दुनिया का कल्याण करने के लिए झंडा लेकर निकल पड़ना।
क) वक्ता और श्रोता का परिचय दीजिए।
> वक्ता चित्रा है, और श्रोता अरुणा। चित्रा एक मशहूर कलाकार बनना चाहती थी और दुनिया भर में अपना नाम बनाना चाहती थी अपनी चित्र की कला से वह देश विदेश में अब बना चुकी थी परंतु अरुणा बिल्कुल इसके विपरीत थी वह सब कार्य और कलाओं को निरर्थक समझती थी क्योंकि उसके लिए सच्चे मन से लोगों की सहायता करना, लोगों के बेरंग जिंदगी में रंग भरना, एवं दीन दुखियों बच्चों को पढ़ा कर उनकी सहायता करना, ही उसके लिए सही कार्य था।
ख) 'वह काम' से वक्त का संकेत किस ओर है? वक्त और श्रोता में अपने-अपने कामों को लेकर किस प्रकार की नोंक- झोंक चलती रहती थी?
> वह काम से वक्त आता संकेत समाज सेवा की ओर है। वक्ता श्रोता अपने-अपने कामों को लेकर हमेशा कामों को ले कर नोंक-झोंक करती रहती थी। जैसे:- अरुणा कहती थी कि मुझे तुम्हारी कला निरर्थक लगती है इतनी बेमतलब लगती है कि बता नहीं सकती और उसे समझाती है कि वह समाज सेवा किसी की मदद करें परंतु चित्रा कहती है कि वह काम तो तेरे लिए छोड़ दिया है। आदि इस प्रकार उनकी नोंक-झोंक चलती रहती थी।
ग) वक्त कहांँ जा रहे थी और क्यों?
> वक्त विदेश जा रही थी क्योंकि उसे खुद को एक बड़ा कलाकार बनाना था जिसे पूरी दुनिया जाने एक चित्रकार के रूप में।
घ) 'वक्ता और श्रोता' के जीवन-उद्देश्यों में अंतर होते हुए भी उनमें घनिष्ठ मित्रता थी'— स्पष्ट कीजिए।
> वक्त और श्रोता के जीवन में बहुत अंतर था परंतु फिर भी उनके मित्रता की चर्चा हर जगह होती रहती थी बहुत से लोग उनकी मित्रता को देखकर जलते थे। दोनों की कला अलग अलग थी परंतु एक ही प्रकार की थी एक को लोगों की मदद करना पसंद था और एक को लोगों की तस्वीरें बनाने की। परंतु फिर भी दे बहुत अच्छे मित्र थे क्योंकि मित्रता के लिए कला नहीं बल्कि एक अच्छी सोच मायने रखती है।
iv) "कहा तो मेरे।" अरुणा से हंँसते हुए कहा।
" अरे बता न, मुझे ही बेवकूफ़ बनाने चली है।"
क) 'कहा तो मेरे' वाक्य का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
> अरुणा चित्रा को कहती है कि ये बच्चे मेरे हैं। जब चित्र दोनों बच्चों को देखती है तब उसे विश्वासी नहीं होता कि वह बच्चे अरुणा के है क्योंकि वह काफी़ बड़े थे और उसकी शादी कुछ साल पहले ही हुई हैं।
ख) ' मुझे यह बेवकूफ़ बनाने चली है'- वाक्य का संदर्भ स्पष्ट करते हुए बताइए कि वक्त आपको श्रोता की किस बात पर विश्वास नहीं हुआ और क्यों?
> वक्ता को श्रोता की यह बात पर यकीन नहीं कर रही थी कि वह बच्चे श्रोता के हैं क्योंकि वह काफी बड़े हैं और उसकी शादी कुछ साल पहले ही हुई हैं।
ग) अरुणा की कौन सी बात सुन का चित्रा की आंँखें फैली की फैली रह गई?
> जब अरुणा ने चित्रा को भिहारनवाले तस्वीर के सामने ले जाकर खड़ा किया और बोला यह दो बच्चे ही अब मेरे बच्चे हैं तभी अरुण कि यह बाद सुनकर चित्रा की आंँखें फैली की फैली रह गई।
घ) चित्रा को किस चित्र से प्रसिद्धि मिली थी?
> चित्रा को भिखारन वाले चित्र से प्रसिद्धि मिली थी।
0 Comments
If you have any doubts, Please let me know.