ICSE कविताएंँ - 'स्वर्ग बना सकते हैं'

 

https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjsnLmquhMWCW6mDo5LQffq9Jf4ARPtBaRVZzDCyJvf6lL1wNCWtAvHpZcf_BTRpaUor-Yze0Jz8WBg-f7opg04Gm6vgI37rs8bYtEUz7f4oYHnZRNQ0iHqwKSNSPvGCKAG7_2cypt61m_3V9jRs3FFhfgd3gV6_P7YtDM0rX9GtXvh1VQz3WGVDD92uQ=s840

                           'स्वर्ग बना सकते हैं'

                                                                                                                                                                                -रामधारी सिंह 'दिनकर'

                                                              कवि परिचय

श्री रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 30 सितंबर 1908 को बिहार के मुंगेर जिले में सिमरिया गांँव में एक कृषक परिवार में हुआ। मैट्रिक की परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने पर इन्हें 'भूदेव स्वर्णपदक' मिला। सन् 1950 में यह एक स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने। यह राज्यसभा के सदस्य भी रहे। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया। दिनकर जी ने गद्य तथा पद्य दोनों प्रकार की रचनाएंँ लिखी। इनके काव्य 'उर्वशी' पर इन्हें 'भारतीय ज्ञानपीठ' पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। 'कुरुक्षेत्र', 'रेणुका', 'हुंकार', 'रसवंती', 'रशिमरथी', 'परशुराम की प्रतिक्षा' इनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएंँ तथा भारतीय संस्कृत के चार अध्याय इनके प्रमुख गद्य रचना है। इनका निधन 24 अप्रैल 1974 को हुआ।
दिनकर जी की रचनाओं में राष्ट्रीयता की गूंँज है।


कठिन शब्दों के अर्थ:-

क्रीत - खरीदी हुई
समीरण - वायु
भव - संसार
आशंका - भय
न्यायोचित - न्याय के अनुसार उचित
मनुज - मनुष्य
संघर्ष - लड़ाई
शमित - शांत
जन्मना - जन्म से
विकीर्ण - बिखरे हुए
कोलाहल - शोर
विघ्न - बाधा
सुलभ - आसानी से प्राप्त
सम - समान
परस्पर - आपस में

व्याख्या

1. धर्मराज यह भूमि किसी की
नहीं क्रीत है दासी
है जन्मना समान परस्पर
इसके सभी निवासी।

भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ स्वर्ग बना सकते हैं कविता से ली गई है। कुरुक्षेत्र के युद्ध में मृत्यु शैया पे पड़े भीष्मपितामह।भीष्मपितामह ने युधिष्ठिर को उद्देश्य देते हुए कहा था- "हे युधिष्ठिर, या धरती किसी की खरीदी हुई दासी नहीं है इसलिए सब का इस पर समान अधिकार है जो भी इस धरती पर जन्म लेता है वह इसका निवासी बन जाता है और इसकी रक्षक करना उनका कर्तव्य है।"

2. सबको मुक्त प्रकाश चाहिए
सबको मुक्त समीरण
बाधा रहित विकास, मुक्त
आशंकाओं से जीवन।

भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ स्वर्ग बना सकते हैं कविता से ली गई है। इस धरती पर जीवित रहने के लिए सबको समान रूप से प्रकाश और वायु चाहिए होता है। तथा, उनके जीवन का विकास बाधाओं से रहित होना चाहिए उनका जीवन डर और आशंकाओं से रहित होना चाहिए।

3. लेकिन विघ्न अनके अभी
इस पथ पर अड़े हुए हैं
मानवता की राह रोककर
पर्वत अड़े हुए हैं।

भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ स्वर्ग बना सकते हैं कविता से ली गई है। प्रत्येक व्यक्ति के विकास के मार्ग में अनेक बाधाएंँ यहांँ रोके खड़ी है। इतना ही नहीं दीवार की तरह विशाल पर्वत भी मार्ग रोके खड़े हैं। अर्थात, गरीबी, भुखमरी, भ्रष्टाचार जैसे समस्याएंँ विकास के मार्ग में बाधा बनी हुई है इस प्रकार की बाधाओं से लड़कर मनुष्य को आगे बढ़ना है।

4. न्यायोचित सुख सुलभ नहीं
जब तक मानव-मानव को
चैन कहांँ धरती पर तब तक
शांति कहांँ इस भव को?

भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ स्वर्ग बना सकते हैं कविता से ली गई है। इस पंक्ति में कवि यस समझाना चाहते हैं कि जब तक प्रत्येक मनुष्य को न्याय के अनुसार सुख के साधन उपलब्ध नहीं होंगे तब तक पृथ्वी में शांति की स्थापना नहीं हो पाएगी।

5. जब तक मनुज-मनुज का यह
सुख भाग नहीं सम होगा
शमित न होगा कोलाहल
संघर्ष नहीं कम होगा।

भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ स्वर्ग बना सकते हैं कविता से ली गई है। इस पंक्ति में कवि समझाना चाहते हैं की जब तक सभी का सुख के साधनों का बंँटवारा समान रूप से नहीं होगा तब तक इस धरती में संघर्ष और शोर-शराबा कम नहीं होगा।

6. उसे भूल वह फंँसा परस्पर
ही शंका में भय में
लगा हुआ केवल अपने में
और भोग-संचय में।

भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ स्वर्ग बना सकते हैं कविता से ली गई है। इस पंक्ति में कवि यह समझाना चाहते हैं कि मनुष्य इस बात को भूल जाता है अपने ही स्वार्थ में लगा रहता है वह केवल अपने लिए ही सुख की वस्तुओं का संग्रह करता रहता है और अपने हिस्से की संपत्ति छिन जाने के डर में जीता है।

7. प्रभु के दिए हुए सुख इतने
हैं विकीर्ण धरती पर
भोग सकें जो उन्हें जगत में,
कहांँ अभी इतने नर?

भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ स्वर्ग बना सकते हैं कविता से ली गई है। इस पंक्ति में कवि यह समझाना चाहते हैं कि इस धरती में भगवान के द्वारा दिया हुआ सुख के साधन इतने अधिक बिखरे पड़े हैं कि उन्हें भोग सकने के लायक इस संसार में मनुष्य नहीं हैं। अर्थात, सुख के साधनों को चाहे तो हर कोई उसका उपयोग कर सकता है।

8. सब हो सकते तुषट, एक सा
सब सुख पा सकते हैं
चाहें तो पल में धरती को
स्वर्ग बना सकते हैं।

भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियां स्वर्ग बना सकते हैं कविता से ली गई है। इस पंक्ति में कवि यह समझाना चाहते हैं कि इस धरती में सुख के प्रक्रितिक वस्तुओं कि कमी नहीं है, यदि चाहे तो सब संतुष्ट हो सकते हैं। और जब सब संतुष्ट हो जाएंँगे तब पल भर में ही यह धरती स्वर्ग बना सकते हैं।

अवतरणों पर आधारित प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए:-

1)धर्मराज यह भूमि किसी की
नहीं क्रीत है दासी
है जन्मना समान परस्पर
इसके सभी निवासी।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए
सबको मुक्त समीरण
बाधा रहित विकास, मुक्त
आशंकाओं से जीवन।

(क) कौन किसे उपदेश दे रहा है? वक्ता ने उसे धर्मराज क्यों कहा है? उसे भूमि और भूमि पर बसने वालों मनुष्यों के संबंध में क्या कहा है?

> भीष्म पितामह धर्मराज युधिष्ठिर को उपदेश दे रहे थे। भीष्म पितामह ने उन्हें धर्मराज कहांँ है क्योंकि वह धर्म परायण और धर्म के पालनहार थे। उन्होंने भूमि पर बसने वाले मनुष्यों के संबंध में यह कहा है कि यह धरती किसी की दासी नहीं है इस धरती पर सबका अधिकार है। इस भूमि पर रहने वाले सभी मनुष्यों का समान रूप से अधिकार है।

(ख) उपयुक्त पंक्तियों में 'भूमि' के संबंध में क्या कहा गया है तथा क्यों?

> उपयोग पंक्तियों में भूमि के संबंध में "क्रीत-दासी" शब्द का प्रयोग किया गया है। इस पंक्ति में यह कहा गया है कि यह भूमि सिर्फ हमारी नहीं है बल्कि यहांँ रहने वाले सभी मनुष्यों एवंम् जीव-जंतुओं के भी हैं, यहांँ सब का समान अधिकार है।

(ग) कवि के अनुसार मानवता के विकास के लिए क्या-क्या आवश्यक है?

> कवि के अनुसार मानवता के विकास के लिए यह आवश्यक है कि सभी लोग का यहांँ इस भूमि पर अधिकार है उनका विकास हो, उनके विकास में किसी प्रकार की बाधा ना आए उन्हें किसी प्रकार की चिंता, आशंका या भय का सामना ना करना पड़े, क्योंकि यह धरती, आकाश, धूप, हवा सबके लिए है और उन पर सभी का समान रूप से अधिकार है।

(घ) उपयुक्त पंक्तियों द्वारा कवि क्या संदेश दे रहे हैं?

> उपयुक्त पंक्तियों द्वारा प्रवीण संदेश दे रहे हैं कि हमें इस धरती को सिर्फ स्वयं की भूमि नहीं समझना चाहिए इस भूमि पर सब लोगों का सामान अधिकार है और यदि सब लोग समान रूप से विकास करेंगे तभी उन्हें भव्य आशंका का सामना नहीं करना पड़ेगा।

2)लेकिन विघ्न अनके अभी
इस पथ पर अड़े हुए हैं
मानवता की राह रोककर
पर्वत अड़े हुए हैं।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं
जब तक मानव-मानव को
चैन कहांँ धरती पर तब तक
शांति कहांँ इस भव को?


(क) 'लेकिन विघ्न अनके अभी इस पथ पर अड़े हुए हैं'— कवि किस पथ की बात कर रहा है? उस पथ में कौन-कौन सी बाधाएंँ हैं?

> इस पंक्ति में कवि या कहना चाह रहे हैं कि मानवता के मार्ग मैं अनेक प्रकार की समस्याएंँ, कठिनाइयांँ और बाधाएंँ हैं, इसलिए मनुष्य का समुचित विकास नहीं हो पाया है।

(ख) धरती पर चैन और शांति लाने के लिए क्या आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।

> धरती पर चैन और शांति लाने के लिए सभी मनुष्य को उनका अधिकार मिलना आवश्यक है तब जाकर के ही इस भूमि पर शांति और चैन की स्थापना हो पाएगी।

(ग) उपयुक्त पंक्तियों का संदेश स्पष्ट कीजिए।

> उपयुक्त पंक्ति स्वर्ग बना सकते हैं कविता से ली गई है इस पंक्ति के द्वारा यह संदेश दिया जा रहा है कि इस धरती में सभी मनुष्यों के अपने अपने अधिकार हैं हमें ना ही किसी के अधिकार को छीनना चाहिए और ना ही किसी के अधिकार पर अपना अधिकार दिखाना चाहिए। यदि हम सब मिलकर अपने-अपने अधिकार को लेकर संतुष्ट हो जाए तो इस धरती पर शांति और चैन का स्थापना हो पाएगा।

(घ) उपयुक्त पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

>प्रस्तुत पंक्तियांँ स्वर्ग बना सकते हैं कविता से ली गई है। प्रत्येक व्यक्ति के विकास के मार्ग में अनेक बाधाएंँ यहांँ रोके खड़ी है। इतना ही नहीं दीवार की तरह विशाल पर्वत भी मार्ग रोके खड़े हैं। अर्थात, गरीबी, भुखमरी, भ्रष्टाचार जैसे समस्याएंँ विकास के मार्ग में बाधा बनी हुई है इस प्रकार की बाधाओं से लड़कर मनुष्य को आगे बढ़ना है।
इस पंक्ति में कवि यस समझाना चाहते हैं कि जब तक प्रत्येक मनुष्य को न्याय के अनुसार सुख के साधन उपलब्ध नहीं होंगे तब तक पृथ्वी में शांति की स्थापना नहीं हो पाएगी।

3)जब तक मनुज-मनुज का यह
सुख भाग नहीं सम होगा
शमित न होगा कोलाहल
संघर्ष नहीं कम होगा।
उसे भूल वह फंँसा परस्पर
ही शंका में भय में
लगा हुआ केवल अपने में
और भोग-संचय में।

(क) 'शमित न होगा कोलाहल'- कवि का संकेत किस प्रकार के कोलाहल की ओर है? या कोलाहल किस प्रकार शांत हो सकता है?

>इस पंक्ति में कवि समझाना चाहते हैं की जब तक सभी का सुख के साधनों का बंँटवारा समान रूप से नहीं होगा तब तक इस धरती में संघर्ष और शोर-शराबा कम नहीं होगा। या कोलाहल सिर्फ एक प्रकार से शांत हो सकता है जब सभी को उनका समान रूप से अधिकार मिल जाए।

(ख) आज मानव के संघर्ष का मुख्य कारण क्या है? कवि के इस संबंध में क्या विचार हैं?

> आज मानव का मुख्य संघर्ष उनका अपना अधिकार पाना है। कवि के इस संबंध में यह विचार है कि जब तक सभी मनुष्य को उनका अपना अधिकार नहीं मिल जाता तब तक इस धरती पर शोर-शराबा होता रहेगा और शांति भाव की स्थापना कभी नहीं हो पाएगी। इसलिए सभी मनुष्य को उनका अधिकार समान रूप से मिल जाए यही कवि चाहते हैं।

(ग) कवि के अनुसार आज का मनुष्य कौन-सी बात भूल गया है तथा वह किस प्रवृत्ति में फँस गया है?

>इस पंक्ति में कवि यह समझाना चाहते हैं कि मनुष्य इस बात को भूल जाता है अपने ही स्वार्थ में लगा रहता है वह केवल अपने लिए ही सुख की वस्तुओं का संग्रह करता रहता है और अपने हिस्से की संपत्ति छिन जाने के डर में जीता है।

(घ) 'लगा हुआ केवल अपने में और भोग-संचय में'- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

> इस पंक्ति में कवि यह कहना चाहते हैं कि आज के मनुष्य केवल अपने सुख, संपत्ति एवंम् अपने बारे में ही सिर्फ सोचता है। और अपनी संपत्ति छीन जाने के डर से जीता है उसकी संपत्ति छीन ना जाए सोच कर अंदर ही अंदर भय ग्रस्त रहता है।

4)प्रभु के दिए हुए सुख इतने
हैं विकीर्ण धरती पर
भोग सकें जो उन्हें जगत में,
कहांँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तुषट, एक सा
सब सुख पा सकते हैं
चाहें तो पल में धरती को
स्वर्ग बना सकते हैं।

(क)'प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर'- पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहते हैं?

> यह पंक्ति स्वर्ग बना सकते हैं कविता से ली गई है इस पंक्ति के द्वारा कवि यह कहना चाहते हैं कि इस पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में सुख के इतने साधन उपलब्ध हैं कि उसे सभी मनुष्यों की सभी आवश्यकताएंँ पूर्ण हो सकती है यदि स्वार्थी लोग अपने लिए संचय करने का भाव छोड़ दे तो पृथ्वी के समाधान ओ का उपयोग सभी मनुष्य कर सकते हैं और सबके उपभोग करने के बाद भी वह बच जाएंगे। भाव यह है कि, धरती पर किसी भी चीज की कमी नहीं है।

(ख)'कहांँ अभी इतने नर'- पंक्ति द्वारा कवि क्या समझाना चाहते हैं और क्यों?

> प्रस्तुत पंक्ति स्वर्ग बना सकते हैं कविता से ली गई है इस पंक्ति में कवि य समझाना चाहते हैं कि इस धरती पर वह सामग्री का जितना विस्तार है अभी उनका उपभोग करने वाले उतने मनुष्य नहीं है। यदि कुछ लोग केवल अपने लिए संचय करने की दुष्प्रवृत्ति का त्याग कर दे तो सबके भोगने के बाद भी खाद्य सामग्री तथा अन्य पदार्थ बचे रह जाएंँगे।

(ग) उपयुक्त पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

>प्रस्तुत पंक्तियांँ स्वर्ग बना सकते हैं कविता से ली गई है। इस पंक्ति में कवि यह समझाना चाहते हैं कि इस धरती में भगवान के द्वारा दिया हुआ सुख के साधन इतने अधिक बिखरे पड़े हैं कि उन्हें भोग सकने के लायक इस संसार में मनुष्य नहीं हैं। अर्थात, सुख के साधनों को चाहे तो हर कोई उसका उपयोग कर सकता है।इस पंक्ति में कवि यह समझाना चाहते हैं कि इस धरती में सुख के प्रक्रितिक वस्तुओं कि कमी नहीं है, यदि चाहे तो सब संतुष्ट हो सकते हैं। और जब सब संतुष्ट हो जाएंँगे तब पल भर में ही यह धरती स्वर्ग बना सकते हैं।

(घ) कवि के अनुसार इस धरती को कैसे स्वर्ग बनाया जा सकता है?

>इस पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में सुख के इतने साधन उपलब्ध हैं कि उसे सभी मनुष्यों की सभी आवश्यकताएंँ पूर्ण हो सकती है यदि स्वार्थी लोग अपने लिए संचय करने का भाव छोड़ दे तो पृथ्वी के समाधान ओ का उपयोग सभी मनुष्य कर सकते हैं और सबके उपभोग करने के बाद भी वह बच जाएंगे। भाव यह है कि, धरती पर किसी भी चीज की कमी नहीं है।इस धरती पर वह सामग्री का जितना विस्तार है अभी उनका उपभोग करने वाले उतने मनुष्य नहीं है। यदि कुछ लोग केवल अपने लिए संचय करने की दुष्प्रवृत्ति का त्याग कर दे तो सबके भोगने के बाद भी खाद्य सामग्री तथा अन्य पदार्थ बचे रह जाएंँगे। ऐसी स्थिति होने पर सब लोग संतुष्ट हो सकते हैं तथा समान रूप से छुपा सकते हैं। यदि ऐसा हो गया तो पल भर में इस धरती को स्वर्ग के समान बनाया जा सकता है अर्थात फिर इस धरती पर वे सब सुख होंगे जो स्वर्ग में उपलब्ध होते हैं।

धन्यवाद!!

Post a Comment

0 Comments