गिरिधर कविराय के जीवन के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है श्री शिव सिंह ने जन्म संवत् 1770 दिया है। उनका कविता काल संवत् 1800 के उपरांत ही माना जा सकता है। गिरिधर कवि ने नीति, वैराग्य और अध्यात्म को ही अपनी कविता का विषय बनाया है। जीवन के व्यवहारिक पक्ष का इनके काव्य में प्रभावशाली वर्णन मिलता है जिसकी पैठ जनमानस में बहुत गहरी हैं। इसलिए इनकी नीति-संबंधी कुंडलियांँ जनमानस में बहुत लोकप्रिय हैं। इस लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है बिल्कुल सरल, सहज, व्यवहारिक तथा सीधी-साधी भाषा में गंभीर तथा नीति परक तथ्यों का कथन। कुंडलियों में ही इन्होंने अपने समस्त काव्य की रचना की। गिरिधर कविराय ग्रंथावली में इनकी पाँच सौ से अधिक कुंडलियांँ संकलित हैं।
कुंडलियों का व्याख्या
1. लाठी में गुण बहुत हैं, सदा राखिये संग। गहरि, नदी, नारी जहांँ, तहांँ बचावै अंग।। तहांँ बचावे अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारै। दुश्मन दावागीर, होयँ तिनहूँ को झारै।। कह 'गिरिधर कविराय' सुनो हो धूर के बाठी।। सब हथियार न छाँङि, हाथ महँ लीजै लाठी।।1।।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ गिरिधर कविराय की कविता से ली गई है। कवि ने इन पंक्तियों में कहा है, कि साधारण का भी बहुत महत्तव होता है, एक मामूली सी लाठी में अनेक गुण होते हैं इसे सदा अपने साथ रखना चाहिए। लाठी अनेक प्रकार से, अनेक स्थितियों में हमारी सहायता करती है। कहीं गड्ढा आ गया तो लाठी के सहारे अपना संतुलन बिगड़ने से बचाया जा सकता हैं, यह लाठी नदी की गहराई नापने में रास्ता पार करने में हमारी मदद करती है। जब कोई कुत्ता झपट पड़ता है तब लाठी के सहारे अपनी रक्षा कर सकते हैं, जब दुश्मनों से गिर जाए तब भी लाठी से अपना बचाव कर सकते हैं। इसलिए गिरिधर कवी कहते हैं, ध्यान से सुनो मेरी बात- खेत धूल में चलने वाले पाठी को सब हथियार छोड़कर लाठी लेकर चलना चाहिए।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ गिरिधर कविराय की कविता से ली गई है। दूसरी कुंडली में भी कवि ने साधारण वस्तु को दर्शाते हुए कहा है- कंबल जो बहुत कम दाम में मिलती है हमारे बहुत काम आती है यह खासा( उत्तम प्रकार का कपड़ा ), मखमल और वाफ्ता ( महंँगा कपड़ा ) जैसे कीमती वस्तुओं को संभाल कर रखने के काम आती है। यह कंबल उन कपड़ों का मान तो रखती ही है साथ ही साथ कंबल उनके बहुत उपयोगदायक है। जैसे कभी छोटी गटरी बनाकर प्रयोग किया जा सकता है, रात को ओड़ने और बिछाने में काम आता है, इतने काम आने के बाद भी यह बहुत सस्ती हैं। इसलिए गिरिधर कविराय कहते हैं कि इतनी उपयोगी कमरी बहुत कम दामों में उपलब्ध हो जाती है अता कमरी को सदैव अपने साथ रखना चाहिए।
3. गुन के गाहक सहस नर बिन गुन लहै ना कोय। जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय।। शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन। दोऊ को एक रंग, काग सब भये अपावन। कह ' गिरिधर कविराय ', सुनो हो ठाकुर मन के।। बिनु गुन लाहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के।।3।।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ गिरिधर कविराय के कविता से ली गई हैं। प्रस्तुत कुंडली में कवि ने कहा है, गुणवान व्यक्ति की प्रशंसा करने वाले हजारों हैं परंतु गुणहीन व्यक्ति की प्रशंसा करने वाला एक भी नहीं। जिस प्रकार कौए और कोयल की आवाज़ सब सुनते हैं। कोयल की आवाज़ मधुर होने के कारण सबको सुहानी लगती है,और कौए कर्कश आवाज़ के कारण कोई उसे पसंद नहीं करता हैं। कोयल की मधुर वाणी को सभी सुनना चाहते हैं, पर कौए की कांँव-कांँव किसी को नहीं भाती। दोनों का रंग काला होता है परंतु मांस खाने के कारण कौए को अपवित्र माना जाता है। इसलिए गिरिधर कवि कहते हैं, गुन से रहित व्यक्ति को कोई नहीं पूछता परंतु गुणवान को सब पूछते हैं, इस समाज में गुणों का आदर किया जाता है रंग-रूप का नहीं। अतः हमें अपने अंदर सद्गुणों को विकसित करना चाहिए और मीठी वाणी का प्रयोग करना चाहिए।
4. साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार। जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार।। तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले। पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले।। कह ' गिरिधर कविराय ' जगत यहि लेखा भाई। करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई।।4।।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ गिरिधर कविराय के कविता से ली गई हैं। प्रस्तुत कुंडली में कवि कहते हैं इस संसार में मतलब का व्यवहार का चलन है। यहां लोग मतलब से बातें करते हैं और मतलब से ही संबंध बनाए बनाए रखते हैं अर्थात जब तक आप का मतलब सिद्ध होता रहता है संबंध बनाए रखे जाते हैं और जब मतलब सिद्ध हो जाता है तो संबंध का अंत हो जाता है, जब तक हाथ में पैसे होते हैं तब तक मित्र होते हैं, मित्र साथ ही साथ चलते हैं। परंतु जैसे ही पैसा समाप्त हो जाता है वही मित्र हमसे बोलना भी पसंद नहीं करते हैं। गिरिधर कवि कहते हैं, यही संसार की रीत है बिना स्वार्थ के प्रेम करना वाले मित्र कोई-कोई ही मिलते हैं। अतः मित्रों का चुनाव करते समय सावधानी परखना चाहिए।
5. रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय। छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय।। जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं। जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं। कह 'गिरिधर कविराय', छाँह मोटे की गहिए। पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए।।5।।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ गिरिधर कविराय के कविता चली गई है। प्रस्तुत कुंडली में कवि ने कहा है दिन बिताते हुए हमें हमेशा सावधान या सचेत रहना चाहिए। जो पेड़ पतला हो उसकी छाया में नहीं बैठना चाहिए और ना ही सोना चाहिए क्योंकि ऐसे पेड़ एक दिन धोखा दे देते हैं आंधी आने पर यह टूट कर हमारे ऊपर गिर सकते हैं और हमें नुकसान पहुंँचा सकते हैं। कभी कहते हैं छाया के लिए हमें हमेशा मोटे और घने पेड़ को ही चुनना चाहिए क्योंकि आंँधी आने पर पत्ते झड़ भी जाए तो भी छांँव दें और कोई नुकसान नहीं पहुंँचाए। अर्थात, मनुष्य को हमेशा बलवान से ही मित्रता करनी चाहिए।
6. पानी बाढै़ नाव में, घर में बाढ़े दाम। दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम।। यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै। पर स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै।। कह "गिरिधर कविराय,' बड़ेन की याही बानी। चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी।।6।।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ गिरिधर कविराय के कविता से ली गई है। गिरिधर कविराय प्रस्तुत कुंडलिया में परोपकार का महत्व स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि यदि नाव में पानी भर जाए और घर में बहुत सा धन आ जाए तो उसे दोनों हाथों से बाहर निकालना चाहिए।जैसे नाव में पानी भर जाए तो उस पानी को दोनों हाथों से यदि निकाला नहीं गया तो नाव डूब जाएगी इसी प्रकार घर में बहुत सा धन आने पर उसके परोपकार के कार्यों में लगाना चाहिए तथा जी खोलकर दूसरों की सहायता करना चाहिए। दान पुण्य करना चाहिए। यही बुद्धिमानी का काम है। हमें प्रभु के नाम का स्मरण भी करना चाहिए और परोपकार के लिए यदि अपने जीवन का बलिदान भी देना पड़ जाए तो दे देना चाहिए। गिरिधर कविराय कहते हैं, कि बड़े-बुजुर्गों ने हमें यही सीख दी है कि हमें हमेशा अच्छे ढंग से जीवनयापन करना चाहिए, सही मार्ग पर चलते हुए अपने सम्मान को बनाए रखना चाहिए केवल सही मार्ग पर चलने से ही अपने सम्मान की रक्षा की जा सकती है।
7. राजा के दरबार में, जैये समया पाय। साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय।। जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए। हँसिए नहि हहाय, बात पूछे ते कहिए। कह 'गिरिधर कविराय' समय सों कीजै काजा अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा।।7।।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियांँ गिरिधर कविराय की कविता से ली गई है। गिरिधर कविराय कहते हैं कि राजा के दरबार में अवसर पाकर ही जाना चाहिए हमें एक बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हमें अपनी हैसियत देखकर ही स्थान ग्रहण करना चाहिए और कभी किसी ऐसे स्थान पर नहीं बैठना चाहिए जो हमारे स्तर के अनुकूल न हो, क्योंकि ऐसे स्थान पर बैठने से हमें कोई भी वहांँ से उठा सकता है। कवि कहते हैं कि ऐसी स्थिति आने पर हमें चुप ही रहना चाहिए। हमें बोलते समय भी संयम बरतना चाहिए। अनावश्यक रूप से कभी जो़र-जो़र से नहीं हंँसना चाहिए। जब हमसे कोई बात पूछी जाए तभी उसका उत्तर देना चाहिए, क्योंकि यही व्यवहार कुशलता है। हमें अपने प्रत्येक कार्य समय पर करना चाहिए। हमें अधिक उतावला नहीं होना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक कार्य उपयुक्त समय आने पर ही होता है। कवि का संकेत है कि हमें राज दरबार के नियमों का पालन करना चाहिए।
कुंडलियों पर आधारित प्रश्न:-
1. लाठी में गुण बहुत हैं, सदा राखिये संग। गहरि, नदी, नारी जहांँ, तहांँ बचावै अंग।। तहांँ बचावे अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारै। दुश्मन दावागीर, होयँ तिनहूँ को झारै।। कह 'गिरिधर कविराय' सुनो हो धूर के बाठी।। सब हथियार न छाँङि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
क) गिरिधर कविराय ने लाठी के किन-किन गुणों की ओर संकेत किया है? > गिरिधर कविराय ने लाठी की अनेक गुण की ओर संकेत किया है जैसे ये लाठी नदी की गहराई नापने में काम आती है, कुत्तों और बदमाशों से अपनी रक्षा कर सकते हैं इस लाठी से, आदि र्काय में काम आता हैं।
ख) लाठी हमारी किन-किन स्थितियों में सहायता करती है? >यह लाठी नदी की गहराई नापने में रास्ता पार करने में हमारी मदद करती है। जब कोई कुत्ता झपट पड़ता है तब लाठी के सहारे अपनी रक्षा कर सकते हैं, जब दुश्मनों से गिर जाए तब भी लाठी से अपना बचाव कर सकते हैं, आदि जैसि परिस्थितियों में हमारी सहायता करती हैं।
ग) कवि सब हथियारों को छोड़कर अपने साथ लाठी रखने की बात कह रहे हैं। क्या आप उनकी बात से सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए। >हाँ, मैं उनकी बात से सहमत हूंँ। क्योंकि लाठी हमारे बहुत से काम आती है जैसे किसी भी परिस्थिति में खुद की रक्षा करने एवं खुद को सहारा देने का काम करता है। किसी भी कठिनाई जैसे नदी पार करनी हो तो लाठी से हम पानी को नाप सकते हैं कि कितनी गहराई में है और उसके हिसाब से हम नदी को पार कर सकते हैं, आदि जैसे बहुत से काम में लाठी हमारी सहायता करती है इसलिए हमें अपने साथ लाठी रखनी चाहिए।
(क) छोटी सी कमरी हमेशा किस-किस काम आ सकती हैं? > छोटी सी कमरी हमारे बहुत से काम आती है जैसे खास मखमल और वाफ्ता जैसे कीमती वस्तुओं को संभाल कर रखने के काम आती है और यह कंबल उन कपड़ों का मान तो रखती ही है साथ ही साथ कंबल की छोटी गटरी बनाकर उसका प्रयोग कर सकते हैं रात को उड़ने और बिछाने का काम आती है और इतने काम आने के बाद भी यह बहुत सस्ती है। इसलिए हमें इसे अपने साथ हमेशा रखना चाहिए।
(ख) गिरिधर कविराय के अनुसार कमरी में कौन-कौन सी विशेषताएंँ होती हैं? > गिरिधर कविराय के अनुसार कमरी में बहुत सी विशेषताएंँ हैं जैसे वह हमारे बिछाने, उड़ने, एवंम् किसी भी वस्तु को संभाल कर रखने में हमारी सहायता करती है, हमारे कपड़ों की मान सम्मान हमेशा बरकरार रखती है, और इतना सब करने के बावजू़द वह बहुत सस्ते दामों में आती हैं।
(ग) 'बकुचा बांँधे मोट, राति को झारि बिछावै'— पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। > इस पंक्ति का आशय है कि कंबल हमारे बहुत से काम आती है और छोटी सी गठरी बनकर भी बहुत से प्रकार के काम करती है। रात में उड़ने और बिछाने के काम आती है।
(घ) 'खास मखमल वा़फ्ता, उनकर राखै मान'– पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहते हैं? > इस पंक्ति द्वारा कवि यह कहना चाहते हैं कि यह खास मखमल और वा़फ्ता जैसे कीमती वस्तुओं को संभाल कर रखने में काम आती है, यह कंबल उन कपड़ों का मान तो रखती है साथ ही साथ कंबल की अनेक उपयोग किए जा सकते हैं। जैसे, छोटी सी गठरी बनाकर, आदि कई तरीके से।
3. गुन के गाहक सहस नर बिन गुन लहै ना कोय।क जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय।। शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन। दोऊ को एक रंग, काग सब भये अपावन। कह ' गिरिधर कविराय ', सुनो हो ठाकुर मन के।। बिनु गुन लाहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के।।3।।
(क) 'गुन के गाहक सहस नर' को स्पष्ट करने के लिए कवि राय ने कौन-सा उदाहरण दिया है और क्यों? > कवि ने पंक्ति का अर्थ समझाने के लिए कौवा और कोयल का उदाहरण दिया है क्योंकि यह दिखते एक समान है परंतु इनका कार्य अलग है और इनके कार्य के कारण लोग इन पक्षियों को अलग-अलग माध्यम और नजरों से देखते और बोलते हैं।
(ख) कागा और कोकिला मैं कौन-सी बात समान है और कौन-सी असमान? स्पष्ट कीजिए। > कागा और कोकिला दिखते एक समान हैं। परंतु कागा अपने कर्कश आवाज़ के कारण सबको अप्रिय लगता है, और कोकिला अपने सुरीली और मधुर आवाज़ के कारण सब को बहुत प्रिय लगता है। दोनों का रंग एक समान हैं परंतु फिर भी लोग दोनों में कोकिला को अधिक प्रिय नज़रों से देखते हैं, और उतनी ही घृणा के नज़रों से कागा को।
(ग) 'बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गहक गुन के'— पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। > इस पंक्ति का यह अर्थ है कि गुन से रहित व्यक्ति को कोई नहीं पूछता परंतु गुणवान को सब पूछते हैं। इसलिए हमें अपने अंदर सद्गुणों को विकसित करना चाहिए और मीठी वाणी का प्रयोग करना चाहिए।
(घ) उपयुक्त कुंडलिया का केंद्रीय भाव स्पष्ट कीजिए तथा बताइए कि इस कुंडलिया द्वारा क्या संदेश दिया गया है? > उपयुक्त कुंडलिया का केंद्र भाव यह समझाना है कि हमें अपने अंदर सारे अवगुणों को मिटाकर अपने अंदर से गुणों को रखना चाहिए हमें हमेशा मीठी वाणी का प्रयोग करना चाहिए कैसी भी परिस्थिति हो हमें हमेशा मीठी वाणी का ही प्रयोग करना चाहिए और अपने अंदर सद्गुणों को विकसित करना चाहिए। इस कुंडली द्वारा गिरिधर हमें यही संदेश देना चाहते हैं कि दुनिया में गुनहीन व्यक्ति की कोई जगह नहीं होती उन्हें कोई नहीं पूछता परंतु गुनवानो को सब पूछते हैं इसलिए हमें हमेशा अपने अंदर सारे गुणहीन भाव यह अवगुणों को हटाकर अपने अंदर गुणों को विकसित करना चाहिए ।
4.साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार। जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार।। तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले। पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले।। कह ' गिरिधर कविराय ' जगत यहि लेखा भाई। करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई।।4।।
(क) कवि के अनुसार इस संसार में किस प्रकार का व्यवहार प्रचलित है? > कवि के अनुसार इस संसार में मतलब का व्यवहार का चलन है। जो पूरे संसार में प्रचलित हैं।
(ख) 'साईं सब संसार में'– शीर्षक कुंडलिया में मिलने वाले संदेश पर प्रकाश डालिए। >'साईं सब संसार में' पंक्ति से कवि यह बताना चाहते हैं कि इस संसार में अब निस्वार्थ भाव से किसी भी रिश्ते को नहीं निभाया जाता हर रिश्ते में स्वार्थ धन, दौलत, संपत्ति, यही सब देखा जाता है। चाहे फिर वह कोई भी रिश्ता क्यों ना हो मित्रता, आदि कोई भी। बिना स्वार्थ के इस संसार में कोई किसी की मदद तक नहीं करता सब स्वार्थी भाव से दूसरों की मदद करते हैं। इसलिए गिरिधर कविराय कहते हैं, कि इस संसार का यही व्यवहार है यही रीति है कि यहां का व्यवहार स्वार्थ पर आधारित है संसार में ऐसे लोगों की संख्या अत्यंत कम है जो बिना किसी स्वार्थ के बिना किसी स्वार्थी भाव के लोगों की मदद करते हैं किसी भी मित्रता को पूरे निष्ठा, प्रेम और भरोसे से निभाते हैं।
(ग) उपयुक्त कुंडलिया में सच्चे एवं झूठे मित्र की क्या पहचान बताई गई है? > उपयुक्त कुंडलिया में सच्चे एवं झूठे मित्र की पहचान यह बताई गई है की झूठे मित्र सिर्फ धन दौलत से प्रेम करते हैं वे केवल धन और दौलत को देखकर मित्र बनते हैं और जब हमारे पास सारे धन खत्म हो जाते हैं तो वह हमसे संबंध तोड़ देते हैं। परंतु सच्चे मित्र कभी भी धन आदि देख कर कभी मित्रता नहीं करते वह पूरी निष्ठा पूर्वक करते हैं और उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता यदि हमारे पास धन की कमी हो जाए वह हमारी सहायता करते हैं ना कि हम से संबंध तोड़ते हैं। परंतु ऐसे व्यक्ति संसार में बहुत कम ही मिलते हैं।
(घ) उपयुक्त कुंडलिया का प्रतिपाद्य लिखिए। > उपयुक्त कुंडलिया द्वारा दी गई सीख हमें हमेशा अपने साथ रखना चाहिए क्योंकि संसार में बहुत कम व्यक्ति है जो सहीं होते हैं और निष्ठा पूर्वक हमारे साथ जीवन भर रहते हैं बिना किसी धन लोभ के। परंतु ऐसे बहुत से धन लोभी व्यक्ति हमारे साथ जुड़ना चाहते हैं यदि हमारे पास धन हो तो हमसे मित्रता करना चाहते हैं और अंत में धन की अधिक कमी हो जाए तो हमसे संबंध तोड़ देते हैं। इसलिए हमें हमेशा चौकन्ना रहना चाहिए और लोगों को जांँच परख के ही अपने साथ संबंध बनाने देना चाहिए।
5. रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय। छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय।। जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं। जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं। कह 'गिरिधर कविराय', छाँह मोटे की गहिए। पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए।।5।।
(क) कवि के अनुसार हमें किस प्रकार के पेड़ की छाया में नहीं बैठना चाहिए और क्यों? > कवि कहते हैं कि किसी भी स्थिति में जीवन व्यतीत कर लो परंतु उस पेड़ की छाया में कभी नहीं बैठना चाहिए जो पतला या कमजोर हो क्योंकि ऐसा पेड़ कभी ना कभी अवश्य धोखा देता है।
(ख) 'छाँह मोटे की गहिए'– पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहते हैं? > पंक्ति द्वारा कवि यह कहना चाहते हैं कि, हमें हमेशा मोटे पेड़ की छांँव लेनी चाहिए क्योंकि मोटा पेड़ आंँधी के प्रहार को सहन कर लेता है तथा कभी धोखा नहीं देता आंँधी आने पर मोटा पेड़ के पत्ते भले ही झड़ जाए परंतु उसका तना और डालियांँ सुरक्षित रखेंगे। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह मजबूत पेड़ की छाया ग्रहण करें।
(ग) उपयुक्त कुंडलिया द्वारा कवि क्या संदेश दे रहे हैं? > उपयुक्त कुंडलियां द्वारा कवि पेड़ के माध्यम से यह संदेश दे रहे हैं कि हमें समर्थ एवं बलवान व्यक्ति का सहारा लेना चाहिए निर्बल का नहीं। निर्बल व्यक्ति ने अपनी सुरक्षा कर सकता है और ना दूसरे की जबकि सफल व्यक्ति स्वयं भी सुरक्षित रहता है और अपने पास आए व्यक्ति को भी सुरक्षित रखता है।
(घ) कवि के अनुसार एक दिन कौन धोखा देगा तथा कब? उससे बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए? > कवि के अनुसार एक दिन पतला टहनी का पेड़ हमें जरूर धोखा देगा क्योंकि आंँधी आने पर वह खुद की रक्षा नहीं कर पाएगा और ना ही दूसरों की। इसलिए इससे बचने के लिए हमें हमेशा मोट पेड़ की छांँव लेनी चाहिए क्योंकि आंँधी आने पर भी वह खुद को संभाल कर रखता है और दूसरों को भी बचाता है। वह कभी धोखा नहीं देगा वह हमेशा एक मज़बूत पेड़ की तरह खड़ा रहेगा और हमारी रक्षा करेगा।
6. पानी बाढै़ नाव में, घर में बाढ़े दाम। दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम।। यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै। पर स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै।। कह "गिरिधर कविराय,' बड़ेन की याही बानी। चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी।।6।।
(क) 'दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम'– पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। > इस पंक्ति का यह भाव है कि यदि हमारे घर में बहुत सा धन आ जाए तो हमें उससे दोनों हाथों से बाहर निकालना चाहिए।
(ख) 'पर स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै'— पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। > इस पंक्ति का आशय है कि जिस प्रकार नौ में पानी भर जाने पर दोनों हाथों से पानी बाहर निकालना पड़ता है उसी प्रकार यदि घर में धन भर जाए तो दोनों हाथों से धन को निकालना चाहिए।
(ग) उपयुक्त कुंडलिया में 'बड़ों की किस वाणी' की चर्चा की गई है तथा क्यों? > उपयुक्त कुंडलिया में बड़े-बुजुर्गों ने हमें यही सीख दी है कि हमें हमेशा अच्छे ढंग से जीवनयापन करना चाहिए सही मार्ग पर चलते हुए अपने सम्मान को बनाए रखना चाहिए केवल सही मार्ग पर चलने से ही अपने सम्मान की रक्षा की जा सकती है। यही वाणी की चर्चा की गई है पंक्ति में।
(घ) उपयुक्त कुंडलिया का प्रतिपाद्य लिखिए। > प्रस्तुत कुंडलिया के द्वारा हमें यह सीख मिलती है कि यदि हमारे पास बहुत धन आजाए या फिर हम बहुत सारा धन अर्जित करते हैं तो हमें उसे दोनों को सही कार्य में लगाना चाहिए। और दोनों हाथों से धन को बाहर निकालना चाहिए जिस प्रकार नाव में पानी भर जाने पर दोनों हाथों से पानी निकालना पड़ता है वरना नाव डूब जाने की संभावना रहती है उसी प्रकार यदि घर में धन आ जाए तो हमें दोनों हाथों से धन निकालना चाहिए। हमें प्रभु के नाम का स्मरण भी करना चाहिए और परोपकार के लिए यदि जीवन का बलिदान भी देना पड़ जाए तो हमें देना चाहिए क्योंकि बड़े बुजुर्ग ने भी कहा है कि, जीवनयापन सही ढंग से करने का यही तरीका है कि हमें सही मार्ग पर चलना चाहिए और अपने सम्मान कि रक्षा सही मार्ग से ही करना चाहिए।
7. राजा के दरबार में, जैये समया पाय। साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय।। जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए। हँसिए नहि हहाय, बात पूछे ते कहिए। कह 'गिरिधर कविराय' समय सों कीजै काजा अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा।।7।।
(क) राजा के दरबार में कब जाना चाहिए, कहांँ नहीं बैठना चाहिए और क्यों? > राजा के दरबार में अवसर पाकर ही जाना चाहिए। हमें एक बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हमें अपनी हैसियत देखकर ही स्थान ग्रहण करना चाहिए और कभी किसी ऐसे स्थान पर नहीं बैठना चाहिए जो हमारे स्तर के अनुकूल ना हो क्योंकि ऐसे स्थान पर बैठने से हमें कोई भी वहांँ से उठा सकता है।
(ख) कवि ने दरबार में कब बोलने और कब ना बोलने की सलाह दी है? > कभी कहते हैं कि ऐसी स्थिति आने पर हमें चुप ही रहना चाहिए हमें बोलते समय भी संयम बरतना चाहिए। जब हमसे कोई बात पूछी जाए तब भी उसका उत्तर देना चाहिए क्योंकि यही व्यवहार कुशल है,और बेवज़ह नहीं बोलते रहना चाहिए।
(ग) 'हँसिए नहि हहाय, बात पूछे ते कहिए'— पंक्ति द्वारा कवि क्या स्पष्ट करना चाहते हैं? > इस पंक्ति द्वारा कभी यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि हमें बेवज़ह अनावश्यक रूप से कभी भी जो़र-जो़र से नहीं हंँसना चाहिए।
(घ) उपयुक्त कुंडलिया से क्या शिक्षा मिलती है? > उपयोग कुंडलियां से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें अधिक उतावला नहीं होना चाहिए क्योंकि प्रत्येक कार्य उपयुक्त समय आने पर ही होता है और हमें अपना प्रत्येक कार्य समय पर करना चाहिए। कवि का संकेत है कि हमें राज दरबार में नियमों का पालन करना चाहिए।
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